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स्टीम बाथ लेने से ब्लड सर्कुलेशन रहता है बेहतर

हाई कोलेस्ट्रॉल, धूम्रपान और डायबिटीज सहित स्ट्रोक से बचाव के लिए सप्ताह में एक बार से अधिक स्टीम (सॉना) बाथ लेने से फायदा होता है। जो लोग सप्ताह में 4 से 7 बार स्टीम बाथ लेते हैं उन्हें स्ट्रोक का खतरा 61 प्रतिशत कम रहता है। (कुओपियो इस्केमिक हार्ट डिजीज रिस्क फैक्ट, फिनलैंड की रिसर्च)

एक्सपर्ट : सॉना बाथ लेने के दौरान रक्त वाहिकाएं फैलती हैं। इससे ब्लड प्रेशर कम होता है। स्ट्रोक, दिल का दौरा पड़ने का खतरा कम रहता है। बाथ से हृदय गति बढ़ती हैं। व्यायाम की तरह काम करता हैं। इसे नियमित लेने वाले व्यक्ति का मानसिक और शारीरिक संतुलन भी पूरी तरह ठीक रहता है।

एलइडी की नीली रोशनी से नींद होती है प्रभावित
एलइडी लाइट्स से निकलने वाली 'नीली रोशनी' शरीर की जैविक घड़ी को प्रभावित करती है। इससे नींद का पैटर्न बदलता है और व्यक्ति तनाव में रहने के साथ चिड़चिड़ेपन स्वभाव का हो जाता है। शरीर में हार्मोन के असंतुलन की भी स्थिति बनती है। (एनवायर्नमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव्स में प्रकाशित)

एक्सपर्ट: नीली लाइट का स्पेक्ट्रम मेलाटोनिन के स्तर को कम करता हैं, जिससे सोने और जागने का चक्र खराब होता है। शरीर की प्रकृति रात को अंधेरे में सोने की होती है। ऐसे में रात की पारी में काम करने वालों की शरीर की प्रकृति सही नहीं रहती है। हॉर्मोनल इंबैलेंस से कैंसर का खतरा भी बढ़ता है।

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स्टीम बाथ लेने से ब्लड सर्कुलेशन रहता है बेहतर

हाई कोलेस्ट्रॉल, धूम्रपान और डायबिटीज सहित स्ट्रोक से बचाव के लिए सप्ताह में एक बार से अधिक स्टीम (सॉना) बाथ लेने से फायदा होता है। जो लोग सप्ताह में 4 से 7 बार स्टीम बाथ लेते हैं उन्हें स्ट्रोक का खतरा 61 प्रतिशत कम रहता है। (कुओपियो इस्केमिक हार्ट डिजीज रिस्क फैक्ट, फिनलैंड की रिसर्च)

एक्सपर्ट : सॉना बाथ लेने के दौरान रक्त वाहिकाएं फैलती हैं। इससे ब्लड प्रेशर कम होता है। स्ट्रोक, दिल का दौरा पड़ने का खतरा कम रहता है। बाथ से हृदय गति बढ़ती हैं। व्यायाम की तरह काम करता हैं। इसे नियमित लेने वाले व्यक्ति का मानसिक और शारीरिक संतुलन भी पूरी तरह ठीक रहता है।

एलइडी की नीली रोशनी से नींद होती है प्रभावित
एलइडी लाइट्स से निकलने वाली 'नीली रोशनी' शरीर की जैविक घड़ी को प्रभावित करती है। इससे नींद का पैटर्न बदलता है और व्यक्ति तनाव में रहने के साथ चिड़चिड़ेपन स्वभाव का हो जाता है। शरीर में हार्मोन के असंतुलन की भी स्थिति बनती है। (एनवायर्नमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव्स में प्रकाशित)

एक्सपर्ट: नीली लाइट का स्पेक्ट्रम मेलाटोनिन के स्तर को कम करता हैं, जिससे सोने और जागने का चक्र खराब होता है। शरीर की प्रकृति रात को अंधेरे में सोने की होती है। ऐसे में रात की पारी में काम करने वालों की शरीर की प्रकृति सही नहीं रहती है। हॉर्मोनल इंबैलेंस से कैंसर का खतरा भी बढ़ता है।

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