इसकी गिनती सरसों की जाति में होती है। इसका दाना छोटा व काला होता है। राई का प्रमुख गुण पाचक होता है।
पेट के कीड़े इसका पानी पीने से मर जाते है।
हैजे में राई को पीस कर पेट पर लेप करने से उदरशूल व मरोड़ में आराम मिलता है।
इसकी पुल्टिस बना कर दर्द वाली जगह पर सेंक किया जाए तो तुरंत राहत मिलती है। राई के लेप से सूजन कम होती है।
गर्म पानी में राई डालने से राई फूल जाती है। और उसके गुण पानी में पहुंच जाते हैं। इस पानी को गुनगुना सहने योग्य कर किसी टब में कमर तक भर कर बैठा जाए तो सभी प्रकार के यौन रोग प्रदर, प्रमेह आदि में बेहतर सुधार आता है।
इसे पीस कर शहद में मिलाकर सूंघने से जुकाम में आराम मिलता है।
मिर्गी-मूर्च्छा में मात्र राई पीस कर सूंघाने से फायदा होता है।
राई के तेल में बारीक नमक मिलाकर मंजन करने से पायरिया रोग का नाश होता है।
नोट: राई के अधिक प्रयोग से उल्टी हो सकती है अत: राई का सीमित मात्रा में प्रयोग करना चाहिए।
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