google.com, pub-5031399508792770, DIRECT, f08c47fec0942fa0 जीभ का कैंसर दांतों की वजह से भी हो सकता है - Ayurveda And Gharelu Vaidya Happy Diwali 2018

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जीभ का कैंसर दांतों की वजह से भी हो सकता है

देश में दांतों की सफाई के मामले में लापरवाही बरतने वालों की संख्या लगभग 4 से 5 प्रतिशत तक है। जो लोग तंबाकू का किसी भी रूप में सेवन नहीं करते हैं, उनमें टूटे दांतों के बीच ठीक से सफाई न होने के कारण मुंह के कैंसर का जोखिम रहता है। मुंह के अंदर त्वचा में लगातार जलन रहने या ऐसे दांतों की वजह से जीभ का कैंसर भी हो सकता है।

आकड़े बताते हैं कि पिछले छह वर्षों में भारत में होंठ और मुंह के कैंसर के मामले दोगुने से अधिक हो गए हैं। हालत को रोकने के लिए खराब दांतों की स्वच्छता, टूटे हुए, तीखे या अनियमित दांतों की ओर ध्यान देना अनिवार्य है। तंबाकू के उपयोग से ओरल सबम्यूकस फाइब्रोसिस जैसे घाव हो सकते हैं, जो उपयोगकर्ता को मुंह के कैंसर के जोखिम में डाल सकते हैं। इसके अलावा यह उपयोगकर्ता के मुंह में अन्य संक्रमणों का भी कारण बन सकती है। भारत में, धूम्र-रहित तंबाकू (एसएलटी) का उपयोग तंबाकू से होने वाली बीमारियों का प्रमुख कारण बना हुआ है, जिसमें ओरल कैविटी (मुंह), ईसोफेगस (भोजन नली) और अग्न्याशय का कैंसर शामिल है। एसएलटी न केवल स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, बल्कि भारी आर्थिक बोझ का कारण भी बनता है। ओरल कैंसर के कुछ अन्य जोखिम कारकों में कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली, ओरल या अन्य किसी प्रकार के कैंसर का पारिवारिक इतिहास, पुरुष होना, ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) संक्रमण, लंबे समय तक धूप में रहने का जोखिम, आयु, मुंह की स्वच्छता में कमी, खराब आहार या पोषण, आदि शामिल हैं।

अरेका नट यानी छाली के साथ एसएलटी का उपयोग करना भारत में एक आम बात है और जैसा कि शुरुआत में कहा गया है, सुपारी क्विड और गुटखा, ये दो चीजें एसएलटी के आमतौर पर उपयोग किए जाने वाले रूपों में प्रमुख हैं। एरेका नट को क्लास वन कार्सिनोजेनिक या कैंसरकारी के रूप में वर्गीकृत किया गया है। साथ ही स्वास्थ्य पर इसके अन्य कई प्रतिकूल प्रभाव भी होते हैं।

कुछ सुझाव :

तंबाकू का उपयोग न करें। यदि करते हैं, तो इस आदत को छोड़ने के लिए तत्काल कदम उठाएं।

शराब का सेवन सीमित मात्रा में ही करें।

धूप में लंबे समय तक न रहें, धूप में जाने से पहले 30 या उससे अधिक एसपीएफ वाले लिप बाम का उपयोग करें।

जंक और प्रोसेस्ड फूड के सेवन से बचें या इसे सीमित करते हुए, बहुत सारे ताजे फल और सब्जियों सहित स्वस्थ आहार का सेवन करें।

शॉर्ट-एक्टिंग निकोटीन रिप्लेसमेंट थेरेपी जैसे कि लोजेंज, निकोटीन गम आदि लेने की कोशिश करें।

उन ट्रिगर्स को पहचानें, जो आपको धूम्रपान करने के लिए उकसाते हैं। इनसे बचने या इनके विकल्प अपनाने की योजना बनाएं।

तंबाकू के बजाय शुगरलैस गम, हार्ड कैंडी, कच्ची गाजर, अजवाइन, नट्स या सूरजमुखी के बीज चबाएं।

सक्रिय रहें। शारीरिक गतिविधि को तेज रखने के लिए बार-बार सीढिय़ों से ऊपर-नीचे जाएं, ताकि तंबाकू की तलब से बच सकें।



from Patrika : India's Leading Hindi News Portal http://bit.ly/2YsywWz
जीभ का कैंसर दांतों की वजह से भी हो सकता है

देश में दांतों की सफाई के मामले में लापरवाही बरतने वालों की संख्या लगभग 4 से 5 प्रतिशत तक है। जो लोग तंबाकू का किसी भी रूप में सेवन नहीं करते हैं, उनमें टूटे दांतों के बीच ठीक से सफाई न होने के कारण मुंह के कैंसर का जोखिम रहता है। मुंह के अंदर त्वचा में लगातार जलन रहने या ऐसे दांतों की वजह से जीभ का कैंसर भी हो सकता है।

आकड़े बताते हैं कि पिछले छह वर्षों में भारत में होंठ और मुंह के कैंसर के मामले दोगुने से अधिक हो गए हैं। हालत को रोकने के लिए खराब दांतों की स्वच्छता, टूटे हुए, तीखे या अनियमित दांतों की ओर ध्यान देना अनिवार्य है। तंबाकू के उपयोग से ओरल सबम्यूकस फाइब्रोसिस जैसे घाव हो सकते हैं, जो उपयोगकर्ता को मुंह के कैंसर के जोखिम में डाल सकते हैं। इसके अलावा यह उपयोगकर्ता के मुंह में अन्य संक्रमणों का भी कारण बन सकती है। भारत में, धूम्र-रहित तंबाकू (एसएलटी) का उपयोग तंबाकू से होने वाली बीमारियों का प्रमुख कारण बना हुआ है, जिसमें ओरल कैविटी (मुंह), ईसोफेगस (भोजन नली) और अग्न्याशय का कैंसर शामिल है। एसएलटी न केवल स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, बल्कि भारी आर्थिक बोझ का कारण भी बनता है। ओरल कैंसर के कुछ अन्य जोखिम कारकों में कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली, ओरल या अन्य किसी प्रकार के कैंसर का पारिवारिक इतिहास, पुरुष होना, ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) संक्रमण, लंबे समय तक धूप में रहने का जोखिम, आयु, मुंह की स्वच्छता में कमी, खराब आहार या पोषण, आदि शामिल हैं।

अरेका नट यानी छाली के साथ एसएलटी का उपयोग करना भारत में एक आम बात है और जैसा कि शुरुआत में कहा गया है, सुपारी क्विड और गुटखा, ये दो चीजें एसएलटी के आमतौर पर उपयोग किए जाने वाले रूपों में प्रमुख हैं। एरेका नट को क्लास वन कार्सिनोजेनिक या कैंसरकारी के रूप में वर्गीकृत किया गया है। साथ ही स्वास्थ्य पर इसके अन्य कई प्रतिकूल प्रभाव भी होते हैं।

कुछ सुझाव :

तंबाकू का उपयोग न करें। यदि करते हैं, तो इस आदत को छोड़ने के लिए तत्काल कदम उठाएं।

शराब का सेवन सीमित मात्रा में ही करें।

धूप में लंबे समय तक न रहें, धूप में जाने से पहले 30 या उससे अधिक एसपीएफ वाले लिप बाम का उपयोग करें।

जंक और प्रोसेस्ड फूड के सेवन से बचें या इसे सीमित करते हुए, बहुत सारे ताजे फल और सब्जियों सहित स्वस्थ आहार का सेवन करें।

शॉर्ट-एक्टिंग निकोटीन रिप्लेसमेंट थेरेपी जैसे कि लोजेंज, निकोटीन गम आदि लेने की कोशिश करें।

उन ट्रिगर्स को पहचानें, जो आपको धूम्रपान करने के लिए उकसाते हैं। इनसे बचने या इनके विकल्प अपनाने की योजना बनाएं।

तंबाकू के बजाय शुगरलैस गम, हार्ड कैंडी, कच्ची गाजर, अजवाइन, नट्स या सूरजमुखी के बीज चबाएं।

सक्रिय रहें। शारीरिक गतिविधि को तेज रखने के लिए बार-बार सीढिय़ों से ऊपर-नीचे जाएं, ताकि तंबाकू की तलब से बच सकें।

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