google.com, pub-5031399508792770, DIRECT, f08c47fec0942fa0 महिलाओं के रोगोंं का इलाज करने के लिए कारगर हैं ये दवाएं - Ayurveda And Gharelu Vaidya Happy Diwali 2018

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महिलाओं के रोगोंं का इलाज करने के लिए कारगर हैं ये दवाएं

पुरुषों की तुलना में महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं ज्यादा होती हैं। जिसके चलते उन्हें कई परेशानियों का सामना बार-बार करना पड़ता है। इनमें होम्योपैथी इलाज मददगार है। जानते हैं ऐसी ही कुछ समस्याओं व इलाज के बारे में-

मेनोरेजिया : इम्युनिटी कमजोर होने से यदि किसी तरह का संक्रमण सेहत को प्रभावित करे तो माहवारी के दौरान अत्यधिक रक्तस्त्राव होना महिलाओं में आम है। इसकी वजह पेल्विक इंफ्लामेट्री डिस्ऑर्डर (पीआईडी) भी हो सकता है। फेरीनोसा, बोरैक्स, कॉलोफाइलम आदि दवा लेने की सलाह देते हैं।

स्केंटी मेन्स्ट्रूएशन : क्रॉनिक रोग जैसे टाइफॉयड, टीबी की वजह से खून की कमी से कुछ महिलाओं में माहवारी के दौरान सामान्य से कम व ज्यादा रक्तस्त्राव होता है जो आगे चलकर विभिन्न रोगों को जन्म देता है। यह स्केंटी मेन्स्ट्रूएशन स्थिति होती है। इसके लिए फैरममैट, सीपिया, नैट्रम म्यूर दवाओं से इलाज होता है।

डिसमेनोरिया : कुछेक महिलाओं को माहवारी के दौरान विशेषकर पेट के निचले हिस्से में ज्यादा दर्द रहता है। यह तनाव लेने, मानसिक व शारीरिक कमजोरी व खानपान में असंतुलित भोजन की वजह से भी हो सकता है। ऐसे में एकोनाइट, बेलाडोना, अब्रोमा, एपिस, पल्सेटिल दवा देते हैं।

अनियमितता : जिन्हें माहवारी के दौरान रक्तस्त्राव कम या ज्यादा और अनियमित हो तो कैल्केरिया फॉस, कैल्केरिया कार्ब, फैरम फॉस, एलुमिना दवाएं दी जाती हैं।

इन्फैन्टाइल ल्यूकेरिया : विशेषकर 6 से 12 वर्ष की लड़कियों में पेट में कीड़ों की वजह से वाइट डिस्चार्ज की समस्या होती है जो शरीर में कमजोरी का भी कारण बनती है। ऐसे में कैल्केरिया कार्ब, आयोडम,सिपिया दवा से इलाज होता है।

मेनोपॉज : 40-45 वर्ष की उम्र के बाद महिलाओं में माहवारी बंद होने की अवस्था मेनोपॉज होती है। इस दौरान महिलाओं में मानसिक व शारीरिक बदलाव होने पर ग्लोनाइल, कैक्टस, सल्फर, नैट्रम म्यूर आदि दी जाती हैं।

ल्यूकेरिया : शरीर में पोषक तत्त्वों की कमी, पीआईडी आदि से वाइट डिस्चार्ज की समस्या में आर्सेनिक, कैल्केरिया कार्ब, एलेट्रिस जैसी दवाएं कारगर हैं।

ये जरूर ध्यान रखें -
किसी भी दवा को डॉक्टरी सलाह के बिना न लें क्योंकि इन दवाओं को मरीज के लक्षणों के आधार पर तय किया जाता है।



from Patrika : India's Leading Hindi News Portal http://bit.ly/2YG3Elz
महिलाओं के रोगोंं का इलाज करने के लिए कारगर हैं ये दवाएं

पुरुषों की तुलना में महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं ज्यादा होती हैं। जिसके चलते उन्हें कई परेशानियों का सामना बार-बार करना पड़ता है। इनमें होम्योपैथी इलाज मददगार है। जानते हैं ऐसी ही कुछ समस्याओं व इलाज के बारे में-

मेनोरेजिया : इम्युनिटी कमजोर होने से यदि किसी तरह का संक्रमण सेहत को प्रभावित करे तो माहवारी के दौरान अत्यधिक रक्तस्त्राव होना महिलाओं में आम है। इसकी वजह पेल्विक इंफ्लामेट्री डिस्ऑर्डर (पीआईडी) भी हो सकता है। फेरीनोसा, बोरैक्स, कॉलोफाइलम आदि दवा लेने की सलाह देते हैं।

स्केंटी मेन्स्ट्रूएशन : क्रॉनिक रोग जैसे टाइफॉयड, टीबी की वजह से खून की कमी से कुछ महिलाओं में माहवारी के दौरान सामान्य से कम व ज्यादा रक्तस्त्राव होता है जो आगे चलकर विभिन्न रोगों को जन्म देता है। यह स्केंटी मेन्स्ट्रूएशन स्थिति होती है। इसके लिए फैरममैट, सीपिया, नैट्रम म्यूर दवाओं से इलाज होता है।

डिसमेनोरिया : कुछेक महिलाओं को माहवारी के दौरान विशेषकर पेट के निचले हिस्से में ज्यादा दर्द रहता है। यह तनाव लेने, मानसिक व शारीरिक कमजोरी व खानपान में असंतुलित भोजन की वजह से भी हो सकता है। ऐसे में एकोनाइट, बेलाडोना, अब्रोमा, एपिस, पल्सेटिल दवा देते हैं।

अनियमितता : जिन्हें माहवारी के दौरान रक्तस्त्राव कम या ज्यादा और अनियमित हो तो कैल्केरिया फॉस, कैल्केरिया कार्ब, फैरम फॉस, एलुमिना दवाएं दी जाती हैं।

इन्फैन्टाइल ल्यूकेरिया : विशेषकर 6 से 12 वर्ष की लड़कियों में पेट में कीड़ों की वजह से वाइट डिस्चार्ज की समस्या होती है जो शरीर में कमजोरी का भी कारण बनती है। ऐसे में कैल्केरिया कार्ब, आयोडम,सिपिया दवा से इलाज होता है।

मेनोपॉज : 40-45 वर्ष की उम्र के बाद महिलाओं में माहवारी बंद होने की अवस्था मेनोपॉज होती है। इस दौरान महिलाओं में मानसिक व शारीरिक बदलाव होने पर ग्लोनाइल, कैक्टस, सल्फर, नैट्रम म्यूर आदि दी जाती हैं।

ल्यूकेरिया : शरीर में पोषक तत्त्वों की कमी, पीआईडी आदि से वाइट डिस्चार्ज की समस्या में आर्सेनिक, कैल्केरिया कार्ब, एलेट्रिस जैसी दवाएं कारगर हैं।

ये जरूर ध्यान रखें -
किसी भी दवा को डॉक्टरी सलाह के बिना न लें क्योंकि इन दवाओं को मरीज के लक्षणों के आधार पर तय किया जाता है।

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