google.com, pub-5031399508792770, DIRECT, f08c47fec0942fa0 काउंसलिंग से घट सकती है क्रॉनिक बीमारी की गंभीरता - Ayurveda And Gharelu Vaidya Happy Diwali 2018

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काउंसलिंग से घट सकती है क्रॉनिक बीमारी की गंभीरता

लंबे समय तक चलने वाले रोग जैसे रुमेटॉयड आर्थराइटिस, डायबिटीज, कैंसर आदि मरीज को शारीरिक और मानसिक तौर पर भी प्रभावित करते हैं। भारतीय व अंतरराष्ट्रीय शोधों के बाद यह सामने आया है कि क्रॉनिक रोगों से पीड़ित मरीजों के जीवन की गुणवत्ता एक्यूट व सामान्य जीवन जी रहे लोगों की तुलना में तीन से चार गुना खराब होती है। ऐसे में दवाओं के साथ-साथ काउंसलिंग सैशन भी चलाया जाए तो उनमें 30-40 फीसदी सुधार हो सकता है।

परेशानी बढ़ाते कारक -
मरीजों में रोग के गंभीर होने का कारण उनकी आर्थिक व सामाजिक स्थिति का प्रभावित होना है। इसके अलावा मरीज का सारा ध्यान रोग के इर्द-गिर्द ही घूमता है जिससे वह अन्य गतिविधियों में सकारात्मक रूप से शामिल नहीं हो पाता, नतीजतन उसकी मानसिक क्षमता कमजोर होने लगती है जो तनाव का कारण बनती है।

समस्या में राहत-
इंडियन जर्नल ऑफ रुमेटोलॉजी में प्रकाशित एक शोध के अनुसार जो महिलाएं रुमेटॉयड आर्थराइटिस से पीडि़त थीं उन्हें एंटीडिप्रेशन दवाओं व काउंसलिंग से तनाव, दर्द व अकड़न में काफी राहत मिली। मनोरोग विशेषज्ञ व उनकी टीम द्वारा किए गए इस शोध में करीब 100 महिलाओं को करीब 6माह तक रुमेटॉयड के साथ एंटीडिप्रेशन दवाएं दी गई। आर्थराइटिस के अलावा पल्मोनरी, डायबिटीज व जिन्हें सिर में चोट लगी थी, उनपर की गई इस तरह की शोध में काफी सुधार सामने आया।

ध्यान रखना जरूरी -
क्रॉनिक रोगों से पीड़ित मरीजों के लिए मानसिक सपोर्ट जरूरी है।
समय-समय पर काउंसलिंग कराएं क्योंकि बीमारी को खत्म करना मुश्किल हो सकता है लेकिन कम करना नहीं।
घरवाले सहयोग करें।



from Patrika : India's Leading Hindi News Portal http://bit.ly/2Qcr6U8
काउंसलिंग से घट सकती है क्रॉनिक बीमारी की गंभीरता

लंबे समय तक चलने वाले रोग जैसे रुमेटॉयड आर्थराइटिस, डायबिटीज, कैंसर आदि मरीज को शारीरिक और मानसिक तौर पर भी प्रभावित करते हैं। भारतीय व अंतरराष्ट्रीय शोधों के बाद यह सामने आया है कि क्रॉनिक रोगों से पीड़ित मरीजों के जीवन की गुणवत्ता एक्यूट व सामान्य जीवन जी रहे लोगों की तुलना में तीन से चार गुना खराब होती है। ऐसे में दवाओं के साथ-साथ काउंसलिंग सैशन भी चलाया जाए तो उनमें 30-40 फीसदी सुधार हो सकता है।

परेशानी बढ़ाते कारक -
मरीजों में रोग के गंभीर होने का कारण उनकी आर्थिक व सामाजिक स्थिति का प्रभावित होना है। इसके अलावा मरीज का सारा ध्यान रोग के इर्द-गिर्द ही घूमता है जिससे वह अन्य गतिविधियों में सकारात्मक रूप से शामिल नहीं हो पाता, नतीजतन उसकी मानसिक क्षमता कमजोर होने लगती है जो तनाव का कारण बनती है।

समस्या में राहत-
इंडियन जर्नल ऑफ रुमेटोलॉजी में प्रकाशित एक शोध के अनुसार जो महिलाएं रुमेटॉयड आर्थराइटिस से पीडि़त थीं उन्हें एंटीडिप्रेशन दवाओं व काउंसलिंग से तनाव, दर्द व अकड़न में काफी राहत मिली। मनोरोग विशेषज्ञ व उनकी टीम द्वारा किए गए इस शोध में करीब 100 महिलाओं को करीब 6माह तक रुमेटॉयड के साथ एंटीडिप्रेशन दवाएं दी गई। आर्थराइटिस के अलावा पल्मोनरी, डायबिटीज व जिन्हें सिर में चोट लगी थी, उनपर की गई इस तरह की शोध में काफी सुधार सामने आया।

ध्यान रखना जरूरी -
क्रॉनिक रोगों से पीड़ित मरीजों के लिए मानसिक सपोर्ट जरूरी है।
समय-समय पर काउंसलिंग कराएं क्योंकि बीमारी को खत्म करना मुश्किल हो सकता है लेकिन कम करना नहीं।
घरवाले सहयोग करें।

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