ये तो सभी जानते हैं कि राखी भाई-बहन के रिश्तों को मजबूत बनाती है, लेकिन क्या आपने इस रिश्ते को बढ़ते या उगते हुए देखा है। शायद नहीं, लेकिन अब आप राखी को घर के गार्डन में ग्रो होते हुए देख भी सकते हैं और उस राखी को लम्बे समय तक सहेजकर भी रख सकते हैं। इन दिनों ऑनलाइन मार्केट में एक खास तरह की इको फ्रेंडली राखी अवेलेबल हैं, जिनमें डिफरेंट तरह के सीड्स लगे हुए हैं। ये राखियां जयपुराइट्स को भी बेहद पसंद आ रही हैं। ये पूरी तरह ईकोफ्रैंडली है। इन्हें देसी कपास से तैयार किया गया है और ग्रामीण महिलाओं ने अपने घर पर इन्हें तैयार किया है।
ऐसे तैयार होंगे Eco-friendly Rakhi प्लांट
इन राखियों में देसी कपास, राई, राजगीरा, नाचणी, लाल हरी भाजी, लाजवंती, तुलसी, प्राजकता, चंदन, बिक्सा, खैर और बेल सहित विभिन्न प्लांट्स के सीड्स लगाए गए हैं, जिन्हें राखी में से निकालकर मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है। वहीं इन्हें बनाने के लिए भी देसी सूत का इस्तेमाल किया जाता है, जो सीधे से खेत से कपास लाकर महिलाएं कलरफुल राखियां तैयार करती हैं।
ऐसे हुई पहल
जब हमें इस तरह की राखियों के बारे में जानकारी मिली, तो पत्रिका प्लस ने टेलीफोनिक इंटरव्यू के जरिए इसके पीछे की कहानी जानी। मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के पारडसिंह गांव के युवाओं की पहल पर ये सीड राखियां तैयार की गई हैं। इनमें कुछ युवा खेतीबाड़ी से जुड़े हुए हैं, वहीं कुछ अपनी जॉब छोडक़र ऑर्गेनिक खेती कर रहे हैं। इन युवाओं ने ग्राम आर्ट प्रोजेक्ट के तहत ये राखियां बनाई हैं। राखियों की कीमतें भी काफी रीजनेबल है।
प्रोजेक्ट से जुड़ी श्वेता बताती हैं कि पारडसिंह में ज्यादातर किसान हाइब्रिड कपास की खेती करते हैं, जिनमें कैमिकल का ज्यादा यूज होता है और ग्राउंड बंजर होता जा रहा है। इसे देखते हुए गांव के कुछ युवाओं ने मिलकर ऑर्गेनिक खेती को प्रमोट किया और इस खेती से ही आर्टिस्टिक चीजों को बनाने का आइडिया आया। पिछले तीन साल से हम इन राखियों पर काम रहे हैं। इन राखियों के जरिए आस-पास के पांच गांवों की ५० महिलाओं को रोजगार भी मिला है। ये महिलाएं घर पर ही अपने बिना किसी मशीन के ये राखियां तैयार कर रही है।
जॉब छोडक़र काम से जुड़ी
प्रोजेक्ट से जुड़ी नूतन बताती हैं कि मुझे ऑर्गेनिक खेती और महिलाओं को रोजगार से जोडऩे में काफी अच्छा लगाता है। इसके लिए मैं अपनी टीचिंग जॉब जोडक़र फुलटाइम इस काम में लग गई हूं। लोगों को हमारा काम बहुत पसंद आ रहा है। हर दिन राखियों की बिक्री हो रही है। जयपुर से भी इन राखियों की काफी डिमांड आ रही है। लोग सीड राखियों में इंटरेस्ट दिखा रहे हैं, जिसके कारण राखियों का स्टॉक काफी तेजी से खत्म हो रहा है। इससे ग्रामीण महिलाओं की इंकम भी हो जाती है।
सराहनीय प्रयास
राखी के त्योहार पर हर कोई यूनीक राखियों को पसंद करता है। ऐसे में सीड्स से तैयार राखियां शहरवासियों को पसंद आ रही है। इन्हें ऑनलाइन खरीदने वाली ममता सैनी बताती हैं कि इन राखियों के जरिए आप अपने भाई को पौधे गिफ्ट कर सकते हैं, जो पर्यावरण के लिए बेहतरीन गिफ्ट है। सोशल वर्क से जुड़ी श्वेता त्रिपाठी कहती है कि ये राखियां महिलाओं को रोजगार का अवसर देती है। हैंडमेड होने के कारण इनमें मशीन का यूज नहीं होता है, एेसे में इनसे लघु उद्योगों को बढ़ावा मिला है।
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Eco-friendly राखियों से तैयार होगी भाई-बहन के अटूट रिश्ते की पौध, मजबूत होंगे रिश्ते
ये तो सभी जानते हैं कि राखी भाई-बहन के रिश्तों को मजबूत बनाती है, लेकिन क्या आपने इस रिश्ते को बढ़ते या उगते हुए देखा है। शायद नहीं, लेकिन अब आप राखी को घर के गार्डन में ग्रो होते हुए देख भी सकते हैं और उस राखी को लम्बे समय तक सहेजकर भी रख सकते हैं। इन दिनों ऑनलाइन मार्केट में एक खास तरह की इको फ्रेंडली राखी अवेलेबल हैं, जिनमें डिफरेंट तरह के सीड्स लगे हुए हैं। ये राखियां जयपुराइट्स को भी बेहद पसंद आ रही हैं। ये पूरी तरह ईकोफ्रैंडली है। इन्हें देसी कपास से तैयार किया गया है और ग्रामीण महिलाओं ने अपने घर पर इन्हें तैयार किया है।
ऐसे तैयार होंगे Eco-friendly Rakhi प्लांट
इन राखियों में देसी कपास, राई, राजगीरा, नाचणी, लाल हरी भाजी, लाजवंती, तुलसी, प्राजकता, चंदन, बिक्सा, खैर और बेल सहित विभिन्न प्लांट्स के सीड्स लगाए गए हैं, जिन्हें राखी में से निकालकर मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है। वहीं इन्हें बनाने के लिए भी देसी सूत का इस्तेमाल किया जाता है, जो सीधे से खेत से कपास लाकर महिलाएं कलरफुल राखियां तैयार करती हैं।
ऐसे हुई पहल
जब हमें इस तरह की राखियों के बारे में जानकारी मिली, तो पत्रिका प्लस ने टेलीफोनिक इंटरव्यू के जरिए इसके पीछे की कहानी जानी। मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के पारडसिंह गांव के युवाओं की पहल पर ये सीड राखियां तैयार की गई हैं। इनमें कुछ युवा खेतीबाड़ी से जुड़े हुए हैं, वहीं कुछ अपनी जॉब छोडक़र ऑर्गेनिक खेती कर रहे हैं। इन युवाओं ने ग्राम आर्ट प्रोजेक्ट के तहत ये राखियां बनाई हैं। राखियों की कीमतें भी काफी रीजनेबल है।
प्रोजेक्ट से जुड़ी श्वेता बताती हैं कि पारडसिंह में ज्यादातर किसान हाइब्रिड कपास की खेती करते हैं, जिनमें कैमिकल का ज्यादा यूज होता है और ग्राउंड बंजर होता जा रहा है। इसे देखते हुए गांव के कुछ युवाओं ने मिलकर ऑर्गेनिक खेती को प्रमोट किया और इस खेती से ही आर्टिस्टिक चीजों को बनाने का आइडिया आया। पिछले तीन साल से हम इन राखियों पर काम रहे हैं। इन राखियों के जरिए आस-पास के पांच गांवों की ५० महिलाओं को रोजगार भी मिला है। ये महिलाएं घर पर ही अपने बिना किसी मशीन के ये राखियां तैयार कर रही है।
जॉब छोडक़र काम से जुड़ी
प्रोजेक्ट से जुड़ी नूतन बताती हैं कि मुझे ऑर्गेनिक खेती और महिलाओं को रोजगार से जोडऩे में काफी अच्छा लगाता है। इसके लिए मैं अपनी टीचिंग जॉब जोडक़र फुलटाइम इस काम में लग गई हूं। लोगों को हमारा काम बहुत पसंद आ रहा है। हर दिन राखियों की बिक्री हो रही है। जयपुर से भी इन राखियों की काफी डिमांड आ रही है। लोग सीड राखियों में इंटरेस्ट दिखा रहे हैं, जिसके कारण राखियों का स्टॉक काफी तेजी से खत्म हो रहा है। इससे ग्रामीण महिलाओं की इंकम भी हो जाती है।
सराहनीय प्रयास
राखी के त्योहार पर हर कोई यूनीक राखियों को पसंद करता है। ऐसे में सीड्स से तैयार राखियां शहरवासियों को पसंद आ रही है। इन्हें ऑनलाइन खरीदने वाली ममता सैनी बताती हैं कि इन राखियों के जरिए आप अपने भाई को पौधे गिफ्ट कर सकते हैं, जो पर्यावरण के लिए बेहतरीन गिफ्ट है। सोशल वर्क से जुड़ी श्वेता त्रिपाठी कहती है कि ये राखियां महिलाओं को रोजगार का अवसर देती है। हैंडमेड होने के कारण इनमें मशीन का यूज नहीं होता है, एेसे में इनसे लघु उद्योगों को बढ़ावा मिला है।