google.com, pub-5031399508792770, DIRECT, f08c47fec0942fa0 प्राकृतिक चिकित्सा से किडनी का इलाज - Ayurveda And Gharelu Vaidya Happy Diwali 2018

नए नुस्खे

Home Top Ad

Post Top Ad

प्राकृतिक चिकित्सा से किडनी का इलाज

एक किडनी (गुर्दा) फेल होने का सामान्यत: लोगों को पता नहीं चल पाता क्योंकि बची हुई दूसरी किडनी के सहारे सामान्य जीवन जिया जा सकता है। इसके लक्षण दोनों गुर्दों के फेल होने पर ही दिखाई देते हैं। ऐसे में शरीर में सूजन, उल्टी, कमजोरी व कम यूरिन जैसी समस्याएं सामने आती हैं। इस स्थिति में विशेषज्ञ गुर्दे के प्रत्यारोपण की सलाह देते हैं और जब तक प्रत्यारोपण नहीं होता तब तक डायलिसिस ही मरीज के जीवित रहने का विकल्प है। आयुर्वेद, पंचगव्य व प्राकृतिक चिकित्सा के मिले-जुले इलाज से गुर्दों को फिर से सक्रिय बनाया जा सकता है। यह इलाज चार चरणों में किया जाता है-

गर्म-ठंडा सेंक : रोगी को उल्टा लेटाकर गुर्दे वाले स्थान पर हॉट वाटर बैग से 5 मिनट सिंकाई करते हैं। उसके बाद 3 मिनट तक बर्फ से उस स्थान पर सेंक किया जाता है। मिट्टी की पट्टी : दूसरे चरण में सूजन कम करने के लिए 20 मिनट तक उस स्थान पर मिट्टी की पट्टीनुमा परत बनाकर रखते हैं।

कटिबस्ती : तीसरी बार में उसी स्थान पर उड़द की दाल के आटे से एक घेरा तैयार किया जाता है। इस घेरे में पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, गोबर व गोमूत्र) से तैयार तेल गुनगुना करके डाला जाता है। इससे किडनी का फैलाव होकर सक्रिय बनाने में मदद मिलती है।

कटिस्नान : आखिरी चरण में मरीज को कटिस्नान कराते हैं। इसमें 5 मिनट के लिए उसे गर्म पानी में व 3 मिनट ठंडे पानी में बैठाया जाता है। इससे गुर्दे की सूजन, यूरिन कम आने की समस्या व पेट की क्रिया में सुधार होता है। इस पूरी प्रक्रिया में करीब दो से ढाई घंटे का समय लगता है साथ ही 10-15 दिनों में मरीज को इससे लाभ मिलना शुरू हो जाता है। इस दौरान विशेषज्ञ मरीज को आयुर्वेदिक औषधियां व खानपान संबंधी परहेज के कुछ निर्देश भी देते हैं। जिनका पालन करना जरूरी होता है।
(पत्रिका संवाददाता शुचिता मिश्रा
से बातचीत पर आधारित)
वैद्य भानुप्रकाश
शर्मा,
आयुर्वेद विशेषज्ञ, जयपुर



from Patrika : India's Leading Hindi News Portal https://ift.tt/2wvfJ0g
प्राकृतिक चिकित्सा से किडनी का इलाज

एक किडनी (गुर्दा) फेल होने का सामान्यत: लोगों को पता नहीं चल पाता क्योंकि बची हुई दूसरी किडनी के सहारे सामान्य जीवन जिया जा सकता है। इसके लक्षण दोनों गुर्दों के फेल होने पर ही दिखाई देते हैं। ऐसे में शरीर में सूजन, उल्टी, कमजोरी व कम यूरिन जैसी समस्याएं सामने आती हैं। इस स्थिति में विशेषज्ञ गुर्दे के प्रत्यारोपण की सलाह देते हैं और जब तक प्रत्यारोपण नहीं होता तब तक डायलिसिस ही मरीज के जीवित रहने का विकल्प है। आयुर्वेद, पंचगव्य व प्राकृतिक चिकित्सा के मिले-जुले इलाज से गुर्दों को फिर से सक्रिय बनाया जा सकता है। यह इलाज चार चरणों में किया जाता है-

गर्म-ठंडा सेंक : रोगी को उल्टा लेटाकर गुर्दे वाले स्थान पर हॉट वाटर बैग से 5 मिनट सिंकाई करते हैं। उसके बाद 3 मिनट तक बर्फ से उस स्थान पर सेंक किया जाता है। मिट्टी की पट्टी : दूसरे चरण में सूजन कम करने के लिए 20 मिनट तक उस स्थान पर मिट्टी की पट्टीनुमा परत बनाकर रखते हैं।

कटिबस्ती : तीसरी बार में उसी स्थान पर उड़द की दाल के आटे से एक घेरा तैयार किया जाता है। इस घेरे में पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, गोबर व गोमूत्र) से तैयार तेल गुनगुना करके डाला जाता है। इससे किडनी का फैलाव होकर सक्रिय बनाने में मदद मिलती है।

कटिस्नान : आखिरी चरण में मरीज को कटिस्नान कराते हैं। इसमें 5 मिनट के लिए उसे गर्म पानी में व 3 मिनट ठंडे पानी में बैठाया जाता है। इससे गुर्दे की सूजन, यूरिन कम आने की समस्या व पेट की क्रिया में सुधार होता है। इस पूरी प्रक्रिया में करीब दो से ढाई घंटे का समय लगता है साथ ही 10-15 दिनों में मरीज को इससे लाभ मिलना शुरू हो जाता है। इस दौरान विशेषज्ञ मरीज को आयुर्वेदिक औषधियां व खानपान संबंधी परहेज के कुछ निर्देश भी देते हैं। जिनका पालन करना जरूरी होता है।
(पत्रिका संवाददाता शुचिता मिश्रा
से बातचीत पर आधारित)
वैद्य भानुप्रकाश
शर्मा,
आयुर्वेद विशेषज्ञ, जयपुर

https://ift.tt/2Phmiv0 Patrika : India's Leading Hindi News Portal

Post Bottom Ad

Pages