google.com, pub-5031399508792770, DIRECT, f08c47fec0942fa0 मौसमी बदलाव में दवा काम न करे तो फेफड़े के कैंसर का खतरा - Ayurveda And Gharelu Vaidya Happy Diwali 2018

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मौसमी बदलाव में दवा काम न करे तो फेफड़े के कैंसर का खतरा

फेफड़े के कैंसर को लंग कार्सिनोमा भी कहते हैं। इसमें कैंसर कोशिकाएं अनियमित रूप से एक या दोनों फेफड़ों में विकसित होने लगती हैं। इस रोग के ज्यादातर मामले धूम्रपान करने वालों में सामने आते हैं। रोग की शुरुआत में अनियमित रूप से बढऩे वाली कोशिकाएं ट्यूमर का रूप लेने लगती हैं और फेफड़ों के काम यानी रक्त के जरिए पूरे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने, को बाधित करती हैं। जानते हैं रोग के लक्षण और इलाज के बारे में-

लक्षण : अत्यधिक कफ बनना या कफ के साथ खून आना, गला बैठना, सांस लेने में तकलीफ होना, सीने में दर्द और बिना किसी कारण के वजन घटना। आमतौर पर इनमें से कुछ लक्षण मौसम के बदलाव से भी होते हैं। लेकिन जिन्हें दवा लेने के बावजूद फायदा न हो या हर बार कफ के साथ खून आए तो तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए।


इन्हें खतरा : आनुवांशिकता के अलावा धूम्रपान की लत, तंबाकू, धूम्रपान करने वालों के साथ रहने वाले, धूल-धुएं वाली जगह में रहना या ऐसी चीजें भोजन में शामिल करना जिनमें कार्सिनोजेनिक केमिकल अधिक हो।

फैलाव की स्टेज, इलाज
1. फेफड़े में अनियमित कोशिका का निर्माण जिसके लिए सर्जरी करते हैं।
2-3. सीने में कोशिका का बनना या कोशिका का फेफड़ों से सीने में फैलाव। इसमें सर्जरी, कीमोथैरेपी के अलावा जरूरतानुसार रेडियोथैरेपी भी देते हैं।
4. कोशिका के ट्यूमर में बदलाव का अन्य अंगों जैसे लसिका ग्रंथि, दिमाग, लिवर, एड्रनिल गं्रथि पर असर। कीमोथैरेपी, ओरल टारेगेटेड थैरेपी, इम्यूनोथैरेपी और रेडिएशन थैरेपी से इलाज करते हैं।

तरह से होती जांच
रोग की पहली स्टेज में पहचान से ८० फीसदी मरीजों का इलाज संभव है। इसके लिए हर स्तर पर अलग-अलग तरह की जांचें होती हैं। तीन तरह से रोग की पहचान करते हैं -
१. प्राइमरी स्टेज : चेस्ट एक्स-रे और सीटी स्कैन।
२. सेकंड्री स्टेज : ब्रॉन्कोस्कोपी, ईबस (एंडोब्रॉन्कियल अल्ट्रासाउंड) या बायोप्सी।
३. एडवांस्ड स्टेज : पूरे शरीर का पैट सीटी स्कैन, मीडियास्टीनोस्कोपी (मुंह से सांस नली के जरिए इंस्ट्रूमेंट को डालकर फेफड़ों की स्थिति का पता लगाते हैं) और एमआरआई।

न्यू ट्रीटमेंट
आमतौर पर लंग स्पेरिंग सर्जरी के तहत मरीज का पूरा एक फेफड़ा निकालने की बजाय कई बार कैंसरग्रस्त हिस्से को हटाते हैं। इसके अलावा यदि फेफड़े के साथ सांसनलियां भी प्रभावित हों तो उन्हें आंशिक रूप से हटाकर इलाज करते हैं।

कैंसर की शुरुआती स्टेज में जल्द रिकवरी के लिए वीडियो व रोबोटिक असिस्टेड सर्जरी की जाती है। साथ ही इन दिनों नए इलाज के रूप में मरीज के फेफड़े के कैंसरग्रस्त भाग पर रेडिएशन देकर उसे नष्ट करते हैं।

जिन मरीजों में एक सेंमी. से कम आकार का ट्यूमर होने के कारण फेफड़े सही से काम नहीं करते उनमें सर्जरी कर कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को बाहर निकालते हैं।

बचाव : धूम्रपान व शराब के साथ पैसिव स्मोकिंग व केमिकल युक्त खानपान से दूर रहें। खानपान में लो फैट और हाई फाइबर जैसी चीजों के अलावा ताजे फल व सब्जियां खाएं। साबुत अनाज इस कैंसर की आशंका को घटाते हैं। रोजाना १-२ घंटे की एरोबिक एक्सरसाइज करें।



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मौसमी बदलाव में दवा काम न करे तो फेफड़े के कैंसर का खतरा

फेफड़े के कैंसर को लंग कार्सिनोमा भी कहते हैं। इसमें कैंसर कोशिकाएं अनियमित रूप से एक या दोनों फेफड़ों में विकसित होने लगती हैं। इस रोग के ज्यादातर मामले धूम्रपान करने वालों में सामने आते हैं। रोग की शुरुआत में अनियमित रूप से बढऩे वाली कोशिकाएं ट्यूमर का रूप लेने लगती हैं और फेफड़ों के काम यानी रक्त के जरिए पूरे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने, को बाधित करती हैं। जानते हैं रोग के लक्षण और इलाज के बारे में-

लक्षण : अत्यधिक कफ बनना या कफ के साथ खून आना, गला बैठना, सांस लेने में तकलीफ होना, सीने में दर्द और बिना किसी कारण के वजन घटना। आमतौर पर इनमें से कुछ लक्षण मौसम के बदलाव से भी होते हैं। लेकिन जिन्हें दवा लेने के बावजूद फायदा न हो या हर बार कफ के साथ खून आए तो तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए।


इन्हें खतरा : आनुवांशिकता के अलावा धूम्रपान की लत, तंबाकू, धूम्रपान करने वालों के साथ रहने वाले, धूल-धुएं वाली जगह में रहना या ऐसी चीजें भोजन में शामिल करना जिनमें कार्सिनोजेनिक केमिकल अधिक हो।

फैलाव की स्टेज, इलाज
1. फेफड़े में अनियमित कोशिका का निर्माण जिसके लिए सर्जरी करते हैं।
2-3. सीने में कोशिका का बनना या कोशिका का फेफड़ों से सीने में फैलाव। इसमें सर्जरी, कीमोथैरेपी के अलावा जरूरतानुसार रेडियोथैरेपी भी देते हैं।
4. कोशिका के ट्यूमर में बदलाव का अन्य अंगों जैसे लसिका ग्रंथि, दिमाग, लिवर, एड्रनिल गं्रथि पर असर। कीमोथैरेपी, ओरल टारेगेटेड थैरेपी, इम्यूनोथैरेपी और रेडिएशन थैरेपी से इलाज करते हैं।

तरह से होती जांच
रोग की पहली स्टेज में पहचान से ८० फीसदी मरीजों का इलाज संभव है। इसके लिए हर स्तर पर अलग-अलग तरह की जांचें होती हैं। तीन तरह से रोग की पहचान करते हैं -
१. प्राइमरी स्टेज : चेस्ट एक्स-रे और सीटी स्कैन।
२. सेकंड्री स्टेज : ब्रॉन्कोस्कोपी, ईबस (एंडोब्रॉन्कियल अल्ट्रासाउंड) या बायोप्सी।
३. एडवांस्ड स्टेज : पूरे शरीर का पैट सीटी स्कैन, मीडियास्टीनोस्कोपी (मुंह से सांस नली के जरिए इंस्ट्रूमेंट को डालकर फेफड़ों की स्थिति का पता लगाते हैं) और एमआरआई।

न्यू ट्रीटमेंट
आमतौर पर लंग स्पेरिंग सर्जरी के तहत मरीज का पूरा एक फेफड़ा निकालने की बजाय कई बार कैंसरग्रस्त हिस्से को हटाते हैं। इसके अलावा यदि फेफड़े के साथ सांसनलियां भी प्रभावित हों तो उन्हें आंशिक रूप से हटाकर इलाज करते हैं।

कैंसर की शुरुआती स्टेज में जल्द रिकवरी के लिए वीडियो व रोबोटिक असिस्टेड सर्जरी की जाती है। साथ ही इन दिनों नए इलाज के रूप में मरीज के फेफड़े के कैंसरग्रस्त भाग पर रेडिएशन देकर उसे नष्ट करते हैं।

जिन मरीजों में एक सेंमी. से कम आकार का ट्यूमर होने के कारण फेफड़े सही से काम नहीं करते उनमें सर्जरी कर कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को बाहर निकालते हैं।

बचाव : धूम्रपान व शराब के साथ पैसिव स्मोकिंग व केमिकल युक्त खानपान से दूर रहें। खानपान में लो फैट और हाई फाइबर जैसी चीजों के अलावा ताजे फल व सब्जियां खाएं। साबुत अनाज इस कैंसर की आशंका को घटाते हैं। रोजाना १-२ घंटे की एरोबिक एक्सरसाइज करें।

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